Can we meet the people we loved after death
मरे हुए लोगों का साक्षात्कार, मेरा अनुभव
मैंने
बहुत बार मरे हुए लोगों के शवों को
नज़दीक से देख़ा है।
ज़िला जालंधर, रामा मंडी के "आशीर्वाद हस्पताल" में मेरी आँखों के सामने एक
चार साल से पांच साल
की बच्ची ने दम तोड़ा
था। मरने के कुछ दिनों
बाद वो बच्ची मुझे
दिखने लगी। असल में वो बच्ची जब
महज़ चार से छह महीने
की थी, तब उसके माँ
- बाप राहों नामक गांव से यहां जालंधर,
रामा मंडी में रहने आये थे। उसका एक बड़ा भाई
भी था, जिसका नाम "नितिन" था। मैंने जब पहली बार
उस बच्ची को अपने हाथों
में उठाया, मुझे ऐसा लगा जैसे मैं उसे आज से नहीं
बल्कि काफ़ी सालों से जानता हूँ।
धीरे - धीरे जैसे वो बड़ी होती
गई, मेरे परिवार वालों के साथ इस
प्रकार घुल - मिल गई, जैसे वो यहाँ हमारे
लिए ही आई हो।
उस प्यारी बच्ची "रमनीत कौर" उर्फ़ "रमन" को रोज़ सुबह
मैं उसके घर से अपने
घर ले आता। मेरे
पिता जी भी कुछ
ही महीनों में उसके साथ पूरी तरह घुल - मिल गए। उस बच्ची में
एक अजीब सी बात थी,
जब मैं उसे अपनी गोद में उठा लेता था, तब वो किसी
के पास नहीं जाती थी। यहाँ तक कि वो
अपने माँ - बाप, अपनी दादी जो उन दिनों
ज़िंदा थीं के पास भी
नहीं जाती थी। मेरे घर में दो
वक़्त की रोटी उन
दिनों बहुत अच्छी चलती थी। "रमन" का तो हमारे
घर पे ऐसा कब्ज़ा
था कि मानो वो
"पंजाबी" में कहती कि मुझे ये
चीज़ ख़ाने का मन है।
तो मेरे सारे घर वाले सब
कुछ छोड़कर उस काम में
लग जाते, जो वो बोलती
थी। मैंने एक बार "रमन"
से पूछा कि अग़र मुझे
कुछ हो गया तो
तुम क्या करोगी ? उस तीन साल
की बच्ची का जवाब पाताल
में घुसा देने वाला था। उसका जवाब था कि अग़र
मुझे कुछ हो गया तो
वो भी ज़िंदा नहीं
रहेगी। उस वक़्त मैंने
उसे अपने गले से लगा लिया।
उसने जाते - जाते अपनी मौत के संकेत इन
बातों से दे दिए
थे, उसने मुझे नीचे लिखी हुई बातें कहीं थी: -
"सोनू भैया", स्कूल से मेरा नाम कटवा दीजिये।
स्कूल में मुझे कोई लकड़ियों से जला रहा है।
मेरे सर में बहुत तेज़ कोई सूई चुभो रहा है।
बीमार
होने के 32 दिनों बाद उसकी मृत्यु हो गई थी।
मैं
ये नहीं कह रहा कि
उसके ऊपर किसी ने कोई काला
जादू कर दिया था।
पर इस बात से
भी किनारा करना मुश्क़िल है कि उसकी
मौत महज़ एक इत्तफ़ाक़ थी।
कारण ये भी हो
सकता है कि उसके
घर वाले ज़िला जालंधर, रामा मंडी से उसे अचानक
ले गए। उन्होंने रामा मंडी से अपने गांव
जाने का फ़ैंसला बड़ी
जल्दी लिया। "रमन" की मम्मी इस
बात से राज़ी नहीं
थी कि वो दोनों
बच्चों को लेकर वापिस
"राहों" जाए। "रमन" के पिता जी
ज़बरदस्ती पूरे परिवार को वापिस "राहों"
ले गए। और वहीं से
शुरू हुआ उस प्यारी बच्ची
"रमन" की मौत का
सफ़र।आज भी याद है
मुझे वो 4 दिसंबर की रात, जब
डॉक्टर ने "रमन" के पिता को
बुलाकर कहा कि आपकी बच्ची
अब इस दुनियां में
नहीं रही। मैंने "रमन" की जीभ को
दाँतों के बीच देखा,
जैसे उसकी जान तब निकल ही
रही हो। मैंने पिछले तीन दिनों से कुछ भी
खाया - पिया नहीं था। मुश्क़िल से घर वालों
की ज़िद्द पर मैंने एक
जूस का गिलास पिया
होगा। जब मैं और
मेरा सारा परिवार "रमन" को दफ़नाने के
बाद अपने घर पहुंचा, तो
मैंने देख़ा कि "रमन" हर मोड़ पे
मुझे दिखाई दे रही है।
मुझे लगा कि शायद मैं
उसे याद कर रहा हूँ,
मेरा उसके साथ मोह - प्यार ज़्यादा था, शायद इस लिए वो
मुझे दिख़ रही है। घर आने के
बाद मैं अपनी और "रमन" की तस्वीरों को
रोज़ देखता और रोता। पर
मैंने देख़ा कि एक रात
कोई बच्ची "सोनू भैया", "सोनू भैया" कहकर मुझे बुला रही है। मैं थोड़ा डर गया और
अपनी माँ को जगाने लगा
कि मुझे डर लग रहा
है, "रमनीत" मुझे आवाज़ दे रही है।
मेरी माँ ने कहा कि
सो जाओ ऐसा कुछ नहीं है। पर हर रोज़
वो मुझे कहीं ना कहीं दिखाई
देती, और मुस्कुराती हुई।
पर उसकी मुस्कान में प्यार कम और तरस
ज़्यादा झलक रहा था। मैंने अपने गुरु जी को भी
इस बारे में बताया कि मुझे वो
बच्ची अब रात में
ही नहीं बल्कि दिन में भी दिखाई दे
रही है। दरअसल "रमन" का दिखाई देना
बड़ी बात या डरने वाली
बात नहीं थी। सबसे ज़्यादा मुझे दुख़ देता था उसका हस्ता
हुआ वो चेहरा जिसके
नीचे कई राज़ छिपाके
वो हम सबको छोड़कर
चली गई। मेरे घर वालों को
कोई ख़बर नहीं थी कि मेरे
साथ क्या हो रहा है।
फ़िर मुझे किसी बुज़ुर्ग व्यक्ति ने बताया कि
कहीं तुमने उसका कोई सामान तो नहीं अपने
पास रखा हुआ? सोचने पर याद आया
कि मैंने उसके सारे ख़िलौने, उसकी एक टी - शर्ट,
उसके कंचे, उसने जो राखी मुझे
बाँधी थी वो मैंने
सब संभालकर अलमारी में रखा हुआ है। मेरी हिम्मत नहीं पड़ी किसी भी चीज़ को
फ़ेंकने की। मैंने एक दिन अपना
आत्म - विश्वास दृढ़ करके रोते हुए, "रमनीत" से प्रार्थना की
कि बेटा तुम ऐसे मत घूमा करो,
तुम्हे चोट लग जाएगी। उसकी
फ़ोटो मेरे हाथ में थी और मेरे
आंसू गिर - गिरकर उसकी फ़ोटो को गीला कर
रहे थे। मैंने उसे ये भी समझाया
कि मैं कुदरत से प्रार्थना करूँगा
कि तुम वापिस मेरे घर जन्म लो
और हम तुम्हे कहीं
ना जाने दें। फ़िर अचानक से वो मुझे
हस्ती हुई दिखाई दी और चली
गई। मेरे पिता जी उसकी मौत
पे बहुत रोये थे। मैंने तब पहली बार
अपने पिता जी को रोते
हुए देखा था। 27 जुलाई 2017 को मेरे पिता
जी की भी मृत्यु
हो गई। 4 दिसंबर 2008 को "रमनीत" की मृत्यु हुई
थी। मुझे इतना तो अनुभव हो
चुका है कि अग़र
आपके पास एक दृढ़ संकल्प
एवं आत्म - विश्वास है, तो आप किसी
भी तरह के डर पर
काबू पा सकते हैं।
मैंने ये जान लिया
है कि ज़िन्दग़ी और
मौत के बीच जो
दुनियां है, वो बहुत ख़तरनाक़
है। मरे हुए किसी भी व्यक्ति को
कभी याद नहीं करना चाहिए। वरना आपका आत्म - विश्वास एक ना एक
दिन उनकी शक़्ल लेके आपके सामने आके खड़ा हो जायेगा, और
आप किसी बड़ी मुसीबत में भी फंस सकते
हैं।
आपको
मेरा ये सच्चा अनुभव
कैसा लगा ? आप मुझे ज़रूर
लिखिये एवं टिप्पणी कीजिये।
आपको
अग़र कोई भी बाहरी शक्ति
तंग कर रही है,
या आपको कभी लगता है कि आपको
किसी ऊपरी साये ने पकड़ा हुआ
है, तो आप मुझे
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करें। मैं आपकी सहायता ज़रूर करूंगा।
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